कछुआ और खरगोश की कहानी जो आपने नहीं सुनी!
दोस्तों कछुआ और खरगोश की कहानी आप सब लोगों ने ज़रूर सुनी होगी, आज हम आपको पुरानी कहानी के साथ साथ उसके आगे की कहानी भी बताएँगे।
जंगल में पहाड़ी के पीछे बहुत सारे पशु पक्षी रहते थे। उन्हीं में एक कछुआ और खरगोश भी थे। एक बार खरगोश को अपनी तेज चाल पर घमंड हो गया और वह जो मिलता उसे रेस लगाने के लिए चुनौती देता। उसने कछुए को भी रेस लगाने की चुनौती देने के साथ -साथ उसका मजाक भी उड़ाया। उसने कहा – “तुम कितना धीरे चलते हो !” यह सुनकर कछुए को गुस्सा आ गया और उसने खरगोश की चुनौती स्वीकार कर ली। खरगोश जोर-जोर से हँसने लगा, हँसते हुए उसने कछुए से कहा कि “तुम मुझसे रेस लगाओगे ?” कछुए ने कहा कल हम दोनों पहाड़ी के दूसरी तरफ जायेंगे फिर देखते हैं कौन पहले पहुँचता है।
अगले दिन सुबह रेस शुरू हुई। खरगोश तेजी से दौड़ा और काफी आगे जाने के बाद उसने पीछे मुड़ कर देखा। कछुआ कहीं नज़र ही नहीं आ रहा था, उसने मन ही मन सोचा यहां तक आने में कछुए को बहुत समय लगेगा, चलो कुछ देर आराम कर लेते हैं। वह एक पेड़ के नीचे लेट गया। लेटे-लेटे कब उसको नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
कछुआ धीरे-धीरे लगातार चलता रहा। बहुत देर बाद जब खरगोश की नींद खुली तो कछुआ अपनी दौड़ पूरी करने ही वाला था। खरगोश पूरी जान लगाकर तेजी से भागा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कछुआ रेस जीत गया।
अब खरगोश को अपनी गलती का अहसास हुआ : धीरे लेकिन लगातार चलने वाले की जीत होती है।
यह कहानी तो आप सभी जानते होंगे, अब देखिये आगे की कहानी:-
अब रेस हारने के बाद खरगोश बहुत निराश होता है, अपनी हार पर वह बहुत चिंतन करता है। अब उसे समझ आता है कि वह यह रेस अति आत्मविश्वास (Overconfidence) के कारण हार गया था। उसे अपनी मंजिल तक पहुंच कर ही रुकना चाहिए था।
वह अगले दिन फिर से कछुए को दौड़ की चुनौती देता है। कछुआ पहली रेस जीत कर आत्मविश्वास से भरा हुआ था अतः दुबारा रेस के लिए तुरंत मान जाता है।
फिर रेस हुई, इस बार खरगोश बिना रुके अंत तक दौड़ता गया, और कछुए को एक बहुत बड़े अंतर से हराया।

इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि “तेज और लगातार चलने वाला धीमे और लगातार चलने वाले से हमेशा जीतता है।” या “धीमे और लगातार होना अच्छा है लेकिन तेज और लगातार होना और भी अच्छा है।”
हार के बाद अब कछुआ कुछ सोच-विचार करता है और उसे यह बात समझ में आती है कि जिस तरह से अभी रेस हो रही थी वह कभी-भी इसे जीत नहीं सकता।
वह एक बार फिर खरगोश को एक नई रेस के लिए ललकारता (Challenge) है, पर इस बार वह रेस का रास्ता अपने मुताबिक रखने को कहता है। खरगोश तैयार हो जाता है।
दौड़ फिर शुरू होती है। खरगोश तेजी से तय स्थान की और दौड़ता है, पर उस रास्ते में एक तेज धार वाली नदी बह रही होती है अतः बेचारे खरगोश को वहीं रुकना पड़ता है। कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ वहाँ पहुंचता है और आराम से नदी पार करके लक्ष्य तक पहुंचकर रेस जीत जाता है।

कहानी से शिक्षा : पहले अपनी ताकत को पहचानों और उसके मुताबिक काम करो तो सफलता अवश्य मिलेगी।
इन सभी रेसें दौड़ने के बाद अब कछुआ और खरगोश बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे और एक दूूसरे की ताकत और कमजोरी समझने लगे थे। दोनों ने मिलकर विचार किया कि अगर हम एक दूूसरे का साथ दें तो कोई भी रेस आसानी से जीत सकते हैं।
इसलिए दोनों ने आखिरी रेस एक बार फिर से मिलकर दौड़ने का फैसला किया, पर इस बार प्रतियोगी के रूप में नहीं बल्कि टीम के रूप में काम करने का निश्चय किया।
दोनों स्टार्टिंग लाइन पर खड़े हो गये, रेस स्टार्ट होते ही खरगोश ने कछुए को ऊपर उठा लिया और तेजी से दौड़ने लगा। दोनों जल्द ही नदी के किनारे पहुंच गए। अब कछुए की बारी थी, कछुए ने खरगोश को अपनी पीठ बैठाया और दोनों आराम से नदी पार कर गए। अब एक बार फिर खरगोश कछुए को उठाकर गंतव्य की ओर दौड़ पड़ा और दोनों ने साथ मिलकर रिकॉर्ड टाइम में रेस पूरी कर ली। दोनों बहुत ही खुश और संतुष्ट थे, आज से पहले कोई रेस जीत कर उन्हें इतनी ख़ुशी नहीं मिली थी।
कहानी से शिक्षा: सामूहिक कार्य हमेशा व्यक्तिगत प्रदर्शन से बेहतर होता है। व्यक्तिगत रूप से चाहे आप जितने होनहार हों लेकिन हमेशा अकेले दम पर नहीं जीत सकते हैं।
यदि आप अपने साथ साथ अपने समूह की ताकत को समझते हैं और आपमें साथ मिलकर कार्य करने की क़ाबलियत है तो आप किसी भी परिस्थिति का सामना आसानी से कर सकते हैं।