आये थे हरि भजन को, औटन लगे कपास। मंजिल को देखा ही नहीं, दौड़ पड़े मन में ले के आस। कुछ दाएं में कुछ बाएं में, खींचा-तानी कर डाला। जब आयी अपनी बारी, तो सारा कानून बदल डाला। ये स्वप्न नहीं सच्चाई है, तू मानव नहीं कसाई है। रोज जलाता है बाजू वालों को, फिर … Read more