मौत भी यहाँ ऐसी आती है…
की किसी को कानो कान खबर नहीं होती,
और दफनाने के लिये भी तो
मौत के बाद यहाँ कबर नहीं होती…
चुपचाप अपने बंद कमरों में,
जिंदगी सिसकियां लेती है यहाँ..
शांत होकर भी तो …
शहर ये रोने नहीं देता
चैन से रात भर भी सोने नहीं देता..
अनगिनत माया फैली है यहाँ
जरूर ए सहर तू,
किसी ना किसी के कब्जे में है…
दूर तक फैले कचरों में भी
जिंदगी बसती हैं यहाँ
पल-पल खाने और पानी को भी वो
जिंदगी तरसती है यहाँ
कुछ जिंदगी पढ़ने लिखने की है
और कुछ तो उससे भी छोटे है
जो बैठ कर कभी-कभी कचरो
के टीलो पर रोते हैं…
और जब तू शहर खाने को नहीं देता तो,
बूँदे आँसुओ की अपनी पीकर,
भूखे पेट ही सोते है…
इनको भी तो सब की तरह ही जीने का अधिकार है
पर तू उनको कुछ नहीं देता उनको
और तुझ पे शहर धिक्कार है
इन सब की केवल एक वजह है
क्योंकि तू ए शहर किसी ना किसी के कब्जे में है…
शहर कब्जे में है…..
रात की रंगीनियों में,
नशे में धुत रहता है क्यों?
जब कोई, रोये छाती पर तेरे बैठकर,
तो चुप रहता है क्यों?
प्यार के दो सब्द तेरे मूह से,
क्यो नहीं है फूटती?
तेरा आलसपन और तृष्णाएँ
क्यों नहीं है टूटती?
रात के अंधेरों में, रोशनी में
नहाया रहता है तू,
क्यो नहीं गरीब के जीवेन में भी,
उजाला करता है तू,
क्यो कभी उनके सपनो में भी,
रंग नहीं भरता है तू?
जो मेहनत करके अपने,
हाथो से बनाते है तुझे…
हर दिन नई दुल्हन की तरह,
सजाते है तुझे…
तेरे लिये सम्मान जिनके हर एक लहजे में है…
क्या उनको पता है सहार की
तू किसी के कब्जे में है…
शहर कब्जे में है…..
मनोज मौर्या