सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 में गुजरात के नडियाद में एक किसान परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम लाडबा देवी एवं पिता का नाम झवेरभाई पटेल था। सरदार पटेल बचपन से ही बहुत परिश्रमी थे और पिता के साथ खेती में हाथ बटाते थे। हाईस्कूल की पढाई के बाद घर की स्थिति अच्छी न होने की वजह से उन्होंने आगे की पढाई स्वाध्याय से ही किया। बाद में उन्होंने लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढाई की तथा वहां से वापस आने के बाद अहमदाबाद में वकालत शुरू कर दी। वे गांधी जी के विचारों से बहुत प्रभावित थे अतः उन्होने महात्मा गाँधी के साथ भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में हिस्सा लिया।
आजादी के बाद वे भारत के प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। उन्होंने बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया और सफलता हासिल की जिससे खुश होकर वहाँ की महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद भारत की विभिन्न बिखरी हुई रियासतों एवं भू-भागों के एकीकरण में सरदार पटेल का ही योगदान था। उनकी इस उपलब्धि के कारण उन्हें भारत का बिस्मार्क (जर्मन साम्राज्य का प्रथम चांसलर) के नाम से जाना जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल का सम्पूर्ण जीवन हमारे लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने अपने जीवन में अनेकों कठिनाईयों का सामना किया और उन पर सफलता हासिल की इसीलिए तो इन्हें लौह पुरुष कहा जाता है। 15 दिसंबर, 1950 को हार्ट अटैक की वजह से उनका देहांत हो गया।
Sardar Vallabhbhai Patel के जीवन के कुछ प्रेरक प्रसंग इस प्रकार हैं:-
एकाग्रता एवं तन्मयता
बचपन में सरदार पटेल अपने पिताजी के साथ खेत पर जाया करते थे। एक दिन की बात है उनके पिताजी खेत में हल चला रहे थे। सरदार पटेल भी उन्हीं के साथ चल रहे थे और चलते हुए पहाड़े याद कर रहे थे। पहाड़े याद करने में वे इतने एकाग्र हो गए की हल के पीछे चलते वक्त उनके पैर में कांटा लग गया और उन्हें पता ही नहीं चला। अचानक उनके पिताजी की नजर वल्लभ भाई के पैरों पर पड़ी तो पांव में बड़ा सा कांटा देखकर चौक गये। बैलों को रोककर वल्लभ भाई पटेल के पैर से कांटा निकाला और तुरंत घाव पर पत्ते लगाकर खून बहने से रोका।
सादगी एवं नम्रता की प्रतिमूर्ति
सरदार पटेल सादगी एवं नम्रता की प्रतिमूर्ति थे। एक बार कि बात है जब सरदार वल्लभ भाई पटेल भारतीय लेजिस्लेटिव असेंबली के अध्यक्ष (President) थे, तो ऐसेंबली के कार्यो के करने के बाद घर के लिए निकल रहे थे कि एक अंग्रेज दम्पत्ति जो विलायत से भारत भ्रमण के लिए आया था, वहां आ पंहुचा। उस दम्पत्ति ने पटेल जी की सादी वेशभूषा और बढ़ी हुई दाढ़ी देखकर उन्हें वहां का चपरासी समझ लिया और उनसे असेंबली में घुमाने के लिए कहा। विनम्रता से उनका आग्रह स्वीकार करते हुए पटेल जी ने उन्हें पूरी असेंबली का भ्रमण कराया। उनसे खुश होकर लौटते वक्त अंग्रेज दम्पत्ति ने एक रुपये बख्शीश में देना चाहा, लेकिन सरदार पटेल जी ने विनम्रतापूर्वक बख्शीश लेने से मना कर दिया। अंग्रेज दंपत्ति वहाँ से चला गया।
दूसरे दिन अंग्रेज दम्पत्ति असेंबली में आये हुए थे सभापति की कुर्सी पर बढ़ी हुई दाढ़ी तथा सादे वस्त्रों वाले व्यक्ति को देखकर वो हैरान रह गए और मन ही मन उन्होंने अपनी भूल का पश्चाताप किया। और उन्हें शर्मिंदगी महशूष हुई की जिसे वे चपरासी समझ रहे थे वह लेजिस्लेटिव ऐसेंबली का President निकला।
कर्तव्यनिष्ठा व ईमानदारी की मिशाल
यह घटना सन् 1909 की है जब उनकी पत्नी बहुत ज्यादा बीमार थीं लेकिन उनको एक बहुत ही जरुरी केस की सुनवाई के सिलसिले में कोर्ट जाना पड़ा। सरदार पटेल कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उसी समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु का तार मिला। तार पढ़कर उन्होंने पत्र को अपनी जेब में ऐसे रख लिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं। लगभग दो घंटे तक बहस चलने के बाद उन्होंने साबित कर दिया कि उनका मुवक्किल बेकसूर है।
अदालत के बाद जब मुवक्किल और दूसरे वकील मित्र बधाई देने वकील साहब (सरदार पटेल) के कमरे में आए तब उन्होंने मित्रों को अदालत में बहस के दौरान मिला हुआ तार दिखाया जिसमें लिखा था कि उनकी पत्नी का देहांत हो गया है। मित्रों ने कहा, ‘बीमार पत्नी को छोड़कर नहीं आना चाहिए था।’ सरदार पटेल ने कहा, “उस समय मैं अपना कर्तव्य निभा रहा था, जिसकी फीस मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था। मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था।” अपनत्व से बड़ा कर्तव्य होता है। ऐसे वकील थे भारत की एकता के निर्माता सरदार वल्लभभाई पटेल।
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सहनशक्ति
तीन वर्षीय जिला मुख्तारी का कोर्स करने के बाद सन 1990 में सरदार पटेल अपने दोस्त काशीभाई के साथ पैसे कमाने के लिए आये। उसी बीच उनकी कांख में बड़ा फोड़ा हो गया जो बिना चीरा लगाए ठीक होने वाला नहीं था। वे एक नाई के पास चीरा लगवाने के लिए गये। नाई उन्हें सलाह दिया की चीरा लगाने के बजाय इसे गर्म सलाखों से जलना ज्यादा बेहतर होगा। सलाखें गर्म होने के बाद नाई फोड़े को जलाने से घबराने लगा तो सरदार पटेल ने स्वयं ही गर्म सलाखों से फोड़े को जला दिया। यह देख कर नाई तथा अन्य साथी लोग भी वल्लभभाई पटेल की इतनी सहनशक्ति देखकर स्तब्ध रह गये।
कच्ची पक्की का फर्क
एक बार सरदार पटेल संत विनोवा भावे जी के आश्रम गये। भोजन के समय कोई उत्तर भारतीय साधक जो भोजन व्यवस्था से जुड़ा था, सरदार पटेल को आश्रम का विशिष्ठ अतिथि होने के नाते उनसे पूछा कि – आपके लिये रसोई पक्की होगी या कच्ची? सरदार पटेल ने साधक से इसका अभिप्राय पूछा, तो साधक ने कहा कि आप कच्चा खाना खायेंगे या पक्का। सरदार पटेल ने कहा कि – कच्चा क्यों खायेंगे पक्का ही खायेंगे। खाते समय सरदार पटेल जी की थाली में पूरी, कचौरी, मिठाई जैसी चीजें परोसी गईं तो उन्होंने सादी रोटी और दाल की माँग की। तो वह साधक बोला कि – आपके निर्देशानुसार ही तो पक्की रसोई बनायी गयी है।
सरदार पटेल जी इस घटना के बाद से ही उत्तर भारत की कच्ची और पक्की रसोई के अंतर को समझ पाये। सरदार पटेल हमेशा सादा एवं सात्विक भोजन लेते थे तथा वह सादा जीवन उच्च विचार में विश्वाश रखते थे।