Short Biography of Premchand in hindi : मुंशी प्रेमचंद का हिन्दी साहित्य में इतना महत्त्वपूर्ण स्थान है कि यदि उनके साहित्य का अध्ययन न किया जाए तो हिंदी साहित्य का अध्ययन निश्चित रूप से अधूरा ही माना जाएगा। उन्होंने यथार्थवादी साहित्य की शुरुआत की। उन्होंने पहले उर्दू में साहित्य लिखना प्रारम्भ किया फिर हिंदी में। वे इतने ख्यातिप्राप्त साहित्यकार थे कि उन्हें “आधुनिक हिंदी कहानी का पितामह” और “उपन्यास सम्राट” भी कहा जाता है।
मुंशी प्रेमचंद का बचपन
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गांव में हुआ था। प्रेमचंद का मूल नाम धनपतराय था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम अजायबराय था। उनके पिताजी डाकमुंशी थे। उनके दादा जी मुंशी गुरुसहाय लाल, पटवारी थे।
सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता का देहावसान हो जाने के कारण वे माँ के प्यार से वंचित ही रह गए। हालाँकि उनके पिता जी ने दूसरी शादी भी की लेकिन उनकी सौतेली माँ व्यावहारिक तौर पर प्रेमचंद के लिए माँ साबित नहीं हुई। बल्कि विमाता का व्यवहार प्रेमचंद के लिए प्रतिकूल ही था। जब प्रेमचंद चौदह-पन्द्रह वर्ष के थे तभी उनके पिता का भी देहान्त हो गया। इन कारणों से उनका प्रारंभिक जीवन बहुत संघर्षमय रहा।
शिक्षा
प्रेमचंद की शिक्षा की शुरुआत उर्दू, फारसी से हुई। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्मे होशरूबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’, मिरजा रुसबा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया था। जीवन के आरंभ में ही इनको गाँव से दूर वाराणसी पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाना पड़ता था। 1898 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण ली और उसके बाद एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही पढ़ाई जारी रखी। 1910 में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और 1919 में बी.ए. पास की। इसके बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।
पहला विवाह
बाल विवाह प्रथा के चलते प्रेमचंद का पहला विवाह मात्र पंद्रह साल की उम्र में हो गया। उनकी पहली पत्नी उन्हें छोड़कर अपने मायके चली गयी। फिर वह कभी वापिस नहीं आई।
विवाह उनके सौतेले नाना ने तय किया था। उस काल के विवरण से लगता है कि लड़की न तो देखने में सुंदर थी, न वह स्वभाव से शीलवती थी। वह झगड़ालू भी थी। प्रेमचंद के कोमल मन का कल्पना-भवन मानो नींव रखते-रखते ही डह गया। इस विवाह का टूटना आश्चर्य न था। प्रेमचंद की पत्नी के लिए यह विवाह एक दु:खद घटना रहा होगा। जीवन पर्यन्त यह उनका अभिशाप बन गया। इस सब का दोष भारत की परम्पराग्रस्त विवाह-प्रणाली पर है, जिसके कारण यह व्यवस्था आवश्यकता से भी अधिक जुए का खेल बन जाती है। प्रेमचंद ने निश्चय किया कि अपना दूसरा विवाह वे किसी विधवा कन्या से करेंगे। यह निश्चय उनके उच्च विचारों और आदर्शों के ही अनुरूप था।
दूसरा विवाह
चूंकि प्रेमचंद जी आर्य समाज से प्रभावित थे इसीलिए वे विधवा-विवाह का समर्थन करते थे और 1906 में उन्होंने दूसरा विवाह बाल-विधवा शिवरानी देवी के साथ ही किया। शिवरानी देवी ने तीन संतानों को जन्म दिया – श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।
शिवरानी देवी के पिता फ़तेहपुर के पास के इलाक़े में एक ज़मीदार थे और शिवरानी जी के पुनर्विवाह के लिए उत्सुक थे।
शिवरानी जी की पुस्तक ‘प्रेमचंद-घर में’, प्रेमचंद के घरेलू जीवन का सजीव और अंतरंग चित्र प्रस्तुत करती है। प्रेमचंद अपने पिता की तरह पेचिश के शिकार थे और निरंतर पेट की व्याधियों से पीड़ित रहते थे। प्रेमचंद स्वभाव से सरल, आदर्शवादी व्यक्ति थे। वे सभी का विश्वास करते थे, किन्तु निरंतर उन्हें धोखा खाना पड़ा। उन्होंने अनेक लोगों को धन-राशि कर्ज़ दी, किन्तु बहुधा यह धन लौटा ही नहीं। शिवरानी देवी की दृष्टि कुछ अधिक सांसारिक और व्यवहार-कुशल थी। वे निरंतर प्रेमचंद की उदार-हृदयता पर ताने कसती थीं, क्योंकि अनेक बार कुपात्र ने ही इस उदारता का लाभ उठाया। प्रेमचंद स्वयं सम्पन्न न थे और अपनी उदारता के कारण अर्थ-संकट में फंस जाते थे। ‘ढपोरशंख’ शीर्षक कहानी में प्रेमचंद एक कपटी साहित्यिक द्वारा अपने ठगे जाने की मार्मिक कथा कहते हैं।
प्रेमचंद का साहित्य परिचय
Munshi Premchand ka Sahityik Parichay : 1910 में उनका कहानी संग्रह सोजे-वतन (राष्ट्र का विलाप) प्रकाशित हुआ। यह संग्रह देशभक्ति भावना को लेकर लिखा गया था। फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने इस पर रोक लगानी चाही। हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। सोजे-वतन की सभी प्रतियाँ जब्त कर ली गई साथ ही उन पर पाबंदी लगाई गयी कि वे अब अंग्रेजों की अनुमति के बिना नहीं लिखेंगे। इस समय तक प्रेमचंद, नबाबराय नाम से लिखते थे।
मुंशी दयानारायण निगम सलाह के अनुसार उन्होंने अपना नाम नबबराय से बदलकर प्रेमचंद कर लिया। इसके बाद वे हमेशा प्रेमचंद के नाम से लिखते रहे।
हिंदी उपन्यास के विकास में प्रेमचंद का योगदान
Premchand ji ka sahitya mein sthan : प्रेमचंद जी ने अपने जीवन काल में 300 से अधिक कहानियाँ लिखी जो अब मानसरोवर संग्रह के आठ भागों में प्रकाशित हैं। सेवासदन, कर्मभूमि, निर्मला, गबन, गोदान, रंगभूमि आदि चर्चित उपन्यासों की रचना की और संग्राम, कर्बला, प्रेम की वेदी नामक नाटक भी लिखे।
प्रेमचंद जी का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास गोदान है। और उनकी सर्वप्रसिद्ध कहानियों में हैं – बूढ़ी काकी, पंच परमेश्वर, वरदान, ईदगाह, पूस की रात आदि।
Munshi Premchand ki mrityu kab hui : जीवन के अंतिम दिनों में वे “मंगलसूत्र” उपन्यास लिख रहे थे जो कि पूरा नहीं हो सका और बीमारी के कारण 8 अक्टूबर 1936 को उनका स्वर्गवास हो गया। उनका यह उपन्यास उनके पुत्र अमृतराय ने पूरा किया।