एक दिन एक फ़कीर सुबह-सुबह किसी शहर में जाने के लिए अपने गाँव से निकला। चलते – चलते उसे सुबह से शाम हो गई, परन्तु उसे कोई भी शहर दिखाई नहीं दिया। शाम से रात्रि होने लगी किन्तु वह शहर नहीं पहुँच सका। वह निरन्तर आगे चलता जा रहा था। आखिर में मध्य रात्रि के समय जब वह बहुत अधिक थक चुका था तब उसने सोचा अब रास्ते में जो भी गाँव आएगा वहीँ विश्राम कर लूंगा।
कुछ आगे चलकर उसे एक छोटा सा गाँव दिखाई दिया, परन्तु मध्यरात्रि होने के कारण सारे ग्रामवासी गहरी निद्रा में सोये हुए थे। वह मन ही मन सोचने लगा कि अब किसका दरवाजा खटखटाऊँ ? इतने में उसने देखा की सामने से एक आदमी आ रहा है। फ़कीर ने उसे रोककर पूछा – भाई, मैं एक परदेशी फ़कीर हूँ, काफी दूर से चलकर आ रहा हूँ। अतः विश्राम करना चाहता हूँ। किन्तु कोई ठिकाना मुझे नहीं मिल रहा है, कृपया आप मेरी कुछ सहायता करेंगे ? उस आदमी ने कहा – देखो भाई, मैं एक चोर हूँ और अपने काम पर निकला हूँ। आप फ़कीर हैं अतः मैं समझता हूँ कि सच बता देना उचित है। यदि आप को कोई दिक्कत नहीं हो तो आप मेरे घर पर बड़ी ख़ुशी से रुक सकते हैं।
फ़कीर ने सोचा विश्राम ही तो करना है फिर चाहे वह घर सेठ-साहूकार का हो या चोर का ! अतः फ़कीर चोर के घर पहुँच गया। चोर ने बड़े आदर के साथ फ़कीर को अपने घर पर ठहराया। दूसरे दिन जैसे ही फ़कीर जाने को तैयार हुआ तो चोर ने उससे रुकने का बड़ा आग्रह किया। चोर के सद्भावपूर्ण आग्रह को देखकर फ़कीर कुछ दिनों के लिए उसके यहाँ रुक गया। जब भी फ़कीर जाने की बात करता, चोर के प्रेमपूर्ण आग्रह के कारण उसे रुक जाना पड़ता। ऐसा करते- करते एक महीना बीत गया। सारा दिन चोर और फ़कीर साथ रहते थे किन्तु रात्रि में चोर अपने काम के लिए निकल जाता। जब सुबह लौटता तो फ़कीर दरवाजा खोलता और उससे पूंछता – कहो भाई, कुछ सफलता मिली ? चोर भी बड़ी सरलता से कहता, नहीं, सफलता तो आज नहीं मिली लेकिन कल अवश्य मिलेगी। यह उत्तर सुनकर फ़कीर उसके चेहरे को बड़े गौर से देखता, किन्तु चोर के चेहरे पर कोई उदाशी या निराशा नहीं झलकती थी। पुनः दूसरी रात्रि में वह चोर फिर उसी उमंग , उत्साह और आशा से चोरी के लिए निकल पड़ता। फ़कीर उसे देखकर रोज हैरान होता था कि यह चोर भी कितना आशावादी है, हर सुबह खाली हाँथ लौटता है परन्तु इसकी उत्साह व आशा में तनिक भी फर्क नहीं पड़ता है।
एक दिन मौका पाकर फ़कीर ने चोर से कहा – भाई, अब सँभलने का समय आ चूका है, अब चोरी करना बंद करो और अपने जीवन की शक्ति तथा समय को किसी सत्कार्य में लगा दो ! चोर ने बड़ी तटस्थता से जवाब दिया – फ़कीर जी , एक बार या अनेकों बार असफलता मिलने से यह कोई जरुरी नहीं है कि सदा असफलता ही मिलती रहेगी। जब तक इस जीवन में श्वांश है तब तक आशा अवश्य रखनी चाहिए। यह सुनकर फ़कीर अपलक दृष्टि से चोर को देखता रहा।
फ़कीर मन ही मन विचार करने लगा की मुझमे और चोर में अधिक अंतर नहीं है, फर्क मात्र इतना है कि मैं परमात्मा को खोज रहा हूँ और वह धन को खोज रहा है। वह रोज धन की खोज में निकलता है और हाँथ कुछ नहीं आता। मैं भी रोज -रोज परमात्मा की प्रार्थना करता हूँ, उनके नाम स्मरण के लिए मैंने घर संसार का त्याग किया परन्तु मुझे भी आज तक परमात्मा की झलक नहीं मिली। कई बार निराश होकर सोचता हूँ छोड़ो इस सन्यास को, चलो फिर से संसार में। परन्तु इस चोर ने मुझे आशावान बना दिया।
वास्तव में यह चोर मेरा सबसे बड़ा गुरु है क्योंकि इसने मेरे बुझते हुए दीपक में तेल डाला है। आज से मैं भी यही संकल्प करता हूँ कि परमात्मा की निरंतर पूजा एवं प्रार्थना करता रहूँगा। यह सोचकर धैर्य रख लूँ कि आज नहीं तो कल उनसे मिलन हो जायेगा। फ़कीर को अब साधना करने का नया रास्ता मिल गया। उसने अपने जीवन का सिद्धांत बना लिया कि आज नहीं तो कल साधना अवश्य पूर्ण होगी।
फ़कीर ने उस चोर को धन्यवाद दिया, तो चोर ने पूँछा – आप मुझे किस बात का धन्यवाद दे रहे हैं ? फ़कीर ने कहा – भाई तूने मेरे भीतर आशा जगा दी है। अब मैं भी प्रभू की भक्ति जीवन के अंतिम क्षण तक करूँगा। यदि तुम्हारी तरह मैं भी आशावान बन गया तो मेरी भी गति साधना में तीव्र हो जाएगी।
दोस्तों इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि ज्ञान कहीं से भी मिले ग्रहण कर लेना चाहिए। जीवन में कभी भी नकारात्मक विचार मन में नहीं लाना चाहिए। जीवन में आशा की किरण ही व्यक्ति को सफलता की तरफ ले जाती है।
Vijay Ji , बहुत अच्छी तरह से समझाकर , इसमे आपने बताया है , और वाकई ये कहानी बहुत अच्छी सीख हमे देती है ,
Good Keep It Up