Guru Gobind Singh Biography in Hindi

गुरु गोविंद सिंह की जीवनी | Guru Gobind Singh Biography in Hindi

गुरु गोविंद सिंह जी (1666-1708) सिख धर्म के दसवें और अंतिम मानव गुरु थे। वे एक महान योद्धा, कवि, भक्त, और समाज सुधारक थे। उनका जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब (वर्तमान में बिहार) में हुआ था। उनका बचपन का नाम गोबिंद राय था। गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन धर्म, वीरता और मानवता की सेवा के लिए समर्पित था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी, सिख धर्म के नौवें गुरु थे, जिन्होंने धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने पिता के बलिदान से प्रेरणा लेकर धर्म और न्याय की रक्षा के लिए अपना जीवन अर्पित किया।

गुरु गोविंद सिंह का इतिहास

गुरु गोविंद सिंह जी का जीवनकाल उस समय के सामाजिक और राजनीतिक संकटों से जुड़ा था। 17वीं सदी के भारत में मुगल शासकों का शासन था, जो धर्मांतरण और अत्याचार में लिप्त थे। सिख धर्म के प्रचार और लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए गुरु गोविंद सिंह ने अनेक संघर्ष किए। उन्होंने समाज में समानता, न्याय और धर्म की स्थापना के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया। उनके नेतृत्व में सिख समुदाय ने न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि अत्याचार के विरुद्ध संगठित होकर खालसा पंथ की स्थापना की।

गुरु गोविंद सिंह का जन्म कहां हुआ?

गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब (अब बिहार) में हुआ। उनका बचपन पटना में बीता, जहां उन्होंने धार्मिक शिक्षा प्राप्त की। उनके बचपन के दिनों में ही उनके पिता, गुरु तेग बहादुर जी, ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। उनके जन्मस्थान, तख्त श्री पटना साहिब, को आज भी सिख समुदाय के प्रमुख तीर्थस्थलों में गिना जाता है।

गुरु गोविंद सिंह जयंती

गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती सिख समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। इसे हर साल गुरु गोविंद सिंह जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व न केवल उनकी शिक्षाओं और उनके द्वारा किए गए बलिदानों को याद करने का अवसर है, बल्कि यह सिख धर्म और संस्कृति के प्रति लोगों के विश्वास को मजबूत करने का भी समय होता है। जयंती के अवसर पर गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थना सभाएं, कीर्तन, और लंगर आयोजित किए जाते हैं।

गुरु गोविंद सिंह का मूल नाम क्या था?

गुरु गोविंद सिंह जी का मूल नाम गोबिंद राय था। उन्हें यह नाम उनके माता-पिता ने दिया था। खालसा पंथ की स्थापना के बाद, उन्होंने अपना नाम बदलकर गोविंद सिंह रख लिया, जो उनके योद्धा रूप और नेतृत्व को दर्शाता है।

प्रारंभिक जीवन

गुरु गोविंद सिंह जी का बचपन पटना और बाद में आनंदपुर साहिब में बीता। वे बचपन से ही बुद्धिमान, साहसी और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 1675 में उनके पिता, गुरु तेग बहादुर जी, ने कश्मीरी पंडितों और अन्य धर्मावलंबियों को मुगल शासकों के अत्याचार से बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। नौ वर्ष की छोटी आयु में गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों के दसवें गुरु के रूप में जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने अपनी शिक्षा में शस्त्र विद्या, घुड़सवारी, तीरंदाजी, और धार्मिक शास्त्रों का गहन अध्ययन किया।

खालसा पंथ की स्थापना

गुरु गोविंद सिंह जी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य खालसा पंथ की स्थापना है। 13 अप्रैल 1699 को बैसाखी के दिन, उन्होंने आनंदपुर साहिब में एक सभा का आयोजन किया और पांच सिंह (पंज प्यारे) – दया सिंह, धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, मोहकम सिंह और साहिब सिंह – को खालसा पंथ के पहले सदस्य के रूप में दीक्षित किया। उन्होंने सिख धर्म को संगठित और सशक्त बनाने के लिए पंच ककार (केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा) को अपनाने का आदेश दिया। उन्होंने प्रत्येक सिख को “सिंह” (शेर) और महिलाओं को “कौर” (राजकुमारी) की उपाधि देकर समानता और स्वाभिमान का संदेश दिया।

सवा लाख से एक लड़ाऊ

गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों को आत्मसम्मान और साहस का पाठ पढ़ाया। उनका प्रसिद्ध कथन है:

सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुडाऊं। तबै गुरू गोविंदसिंह नाम कहाऊं।

इस कथन का अर्थ है कि गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को इतनी शक्ति और आत्मविश्वास दिया कि वे सवा लाख के विरुद्ध अकेले भी लड़ सकते हैं। यह कथन सिखों के साहस और बलिदान का प्रतीक है।

औरंगजेब और गुरु गोविंद सिंह

गुरु गोविंद सिंह जी का मुगल सम्राट औरंगजेब के साथ संघर्ष धर्म और न्याय की रक्षा के लिए था। औरंगजेब ने गुरु जी और उनके अनुयायियों पर कई अत्याचार किए। गुरु गोविंद सिंह जी ने औरंगजेब के अत्याचारों का सामना बहादुरी से किया। गुरु जी ने मुगलों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और उनके अत्याचारों का विरोध किया। गुरु गोविंद सिंह जी ने औरंगजेब को एक प्रसिद्ध पत्र लिखा, जिसे “ज़फ़रनामा” कहा जाता है। इसमें उन्होंने औरंगजेब के अन्याय और झूठ को उजागर किया और सच्चाई की महत्ता को बताया।

प्रकाश पर्व

गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन और शिक्षाओं को सम्मानित करने के लिए, उनकी 350वीं जयंती को 2017 में “प्रकाश पर्व” के रूप में मनाया गया। यह उत्सव पटना साहिब और अन्य गुरुद्वारों में विशेष कार्यक्रमों के साथ आयोजित किया गया था। इस अवसर पर दुनिया भर से सिख समुदाय के लोग इकट्ठा हुए और गुरु जी की शिक्षाओं को याद किया। “प्रकाश पर्व” ने उनकी शिक्षाओं को वैश्विक स्तर पर प्रचारित करने और समाज में उनके योगदान को मान्यता देने का काम किया।

काव्य और साहित्य

गुरु गोविंद सिंह जी न केवल एक योद्धा थे, बल्कि वे एक उत्कृष्ट कवि और साहित्यकार भी थे। उनके साहित्य में वीरता, भक्ति और नैतिकता की भावना प्रकट होती है। उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें जप साहिब, चौपाई साहिब, चंडी दी वार, और दशम ग्रंथ प्रमुख हैं। उनके लेखन में उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए वीरता और साहस के महत्व को उजागर किया। उनकी कविताओं में गहरी आध्यात्मिकता के साथ-साथ जीवन जीने की प्रेरणा भी है।

गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु कब और कैसे हुई?

गुरु गोविंद सिंह जी की मृत्यु 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड़ (महाराष्ट्र) में हुई। उनकी मृत्यु का कारण एक साजिश थी। सरहिंद के नवाब के आदेश पर एक पठान, गुलाम महमूद, ने गुरु जी पर जानलेवा हमला किया। इस हमले में गुरु गोविंद सिंह जी गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्होंने अपने अंतिम समय में सिखों को यह आदेश दिया कि अब से गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरु माना जाए। उनकी मृत्यु सिख धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है।

गुरु गोबिंद सिंह को किसने मारा?

गुरु गोविंद सिंह जी पर हमला करने वाला व्यक्ति गुलाम महमूद था, जिसे मुगलों द्वारा इस साजिश के लिए नियुक्त किया गया था। हालांकि, इस हमले के बाद गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को धर्म और न्याय की राह पर चलने की प्रेरणा दी। उनकी शहादत ने सिख समुदाय को और अधिक संगठित और सशक्त बना दिया।

बलिदान और वीरता

गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन बलिदान और वीरता की मिसाल है। उन्होंने अपने चारों पुत्रों (साहिबजादों) को धर्म की रक्षा के लिए बलिदान करते देखा। उनके दो छोटे पुत्रों, जोरावर सिंह (9 वर्ष) और फतेह सिंह (7 वर्ष), को सरहिंद के नवाब ने निर्दयता से दीवार में जिंदा चुनवा दिया। उनके बड़े पुत्र, अजीत सिंह और जुझार सिंह, ने चमकौर के युद्ध में बहादुरी से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।

निष्कर्ष

गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन संघर्ष, बलिदान और धर्म की रक्षा के लिए समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने न केवल सिख धर्म को एक संगठित और सशक्त रूप दिया, बल्कि मानवता और न्याय की रक्षा के लिए भी अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उनकी शिक्षाएं सत्य, समानता, साहस और भाईचारे का संदेश देती हैं। गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा और धर्म के लिए समर्पण की प्रेरणा देता है। उनकी विरासत सदैव अमर और अनुकरणीय है।

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