एक बार की बात है एक गाँव में एक बुढ़िया और उसका बेटा हरिया रहते थे। एक दिन अचानक रात में एक चोर उनके घर में घुस जाता है। जैसे ही उसने कमरे का दरवाजा खोला तो देखा कि एक बूढ़ी औरत सो रही थी। खटपट की आवाज सुनकर उस बुढ़िया की आंख खुल गई। चोर ने घबरा कर देखा तो वह लेटे-लेटे बोली – बेटा, तुम देखने से किसी अच्छे घर के लगते हो, लगता है किसी परेशानी से मजबूर होकर इस रास्ते पर लग गए हो। चलो कोई बात नहीं। मैं तुम्हारी मदद कर देती हूँ, अलमारी के तीसरे बक्से में एक तिजोरी है। इसमें का सारा माल रखा हुआ है, तुम चुपचाप वह मॉल उठा ले जाना।
मगर पहले मेरे पास आकर बैठो और मेरी बात ध्यान से सुनो – मैंने अभी-अभी एक ख्वाब देखा है। वह सुनकर जरा मुझे इसका मतलब तो बता दो? चोर उस बूढ़ी औरत की रहमदिली से बड़ा अभिभूत हुआ और चुपचाप उसके पास जाकर बैठ गया। बुढ़िया ने अपना सपना सुनाना शुरु किया, उसने कहा – बेटा मैंने देखा कि मैं एक सुनसान रेगिस्तान में खो गई हूँ और मुझे कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। ऐसे में एक चील मेरे पास आई और उसने 3 बार जोर जोर से बोला – हरिया। ।हरिया। ।हरिया। !!!
बस फिर ख्वाब खत्म हो गया और मेरी आंख खुल गई। बेटा जरा बताओ तो इसका क्या मतलब हुआ? बुढ़िया की बात से चोर सोच में पड़ गया। इतने में बराबर वाले कमरे से बुढ़िया का नौजवान बेटा हरिया अपना नाम ज़ोर ज़ोर से सुनकर उठ गया और अंदर आकर चोर की जमकर धुनाई कर दी। बुढ़िया बोली “बस करो अब यह अपने किए की सजा भुगत चुका है।”
मन ही मन चोर को अपने ऊपर इतना गुस्सा आया की वह अपने आप पर काबू नहीं कर सका और बोला – “और मारो मुझे” ताकि मुझे आगे याद रहे कि “मैं चोर हूँ सपनों का मतलब बताने वाला नहीं।”
दोस्तों बुढ़िया ने जिस बुद्धिमानी से चोर को पकड़वाया उसकी जितनी भी प्रसंशा की जाये वो काम है। क्योंकि अगर बुढ़िया से थोड़ी भी गलती हो जाती तो चोर मार भी सकता था। लेकिन बुढ़िया ने आपत्ति के समय में भी बुद्धि से काम लिया। इसलिए कितनी भी परिस्थिति क्यों न हो हमेशा ठण्डे दिमाग से सोच-समझकर ही कदम बढ़ाना चाहिये।
जैसे कि कहा गया है – “बुद्धिर्यस्य बालम तस्य, निर्बुद्धिश्च कुतो बालम॥”
अर्थात जिसके पास बुद्धि है उसी के पास बल है और जिसके पास बुद्धि नहीं है उसके पास बल कभी नहीं हो सकता है।
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