बूढ़े बाज की आत्मशक्ति

दोस्तों यह Story किसी ने मुझे whatsapp पर share किया था, यह कहानी पढ़कर मुझे बहुत अच्छी लगी और बहुत ही motivational है, और मै इसे आपके बीच रख रहा हूँ, उम्मीद है आपको भी पसंद आयेगी, और आप सब को इस story से प्रेरड़ा जरूर मिलेगी।

बाज का पुनर्जन्म (Eagle rebirth) | Baaj ki Udaan Story in Hindi | बाज के संघर्ष की कहानी | Story of Eagle Struggle

बाज एक ऐसा पक्षी है जिसकी उम्र लगभग 70 वर्ष होती है। परन्तु अपने जीवन के 40वें वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है। उस अवस्था में उसके शरीर के 3 प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं:- पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है, तथा शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं। चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है, और भोजन में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है। पंख भारी हो जाते हैं, और सीने से चिपकने के कारण पूर्णरूप से खुल नहीं पाते हैं, उड़ान को सीमित कर देते हैं।

अब उसे भोजन ढूँढ़ना, भोजन पकड़ना, और भोजन खाना, तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं। अब उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं, कि वह:-

1. देह त्याग दे,
2. अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे !!
3. या फिर “स्वयं को पुनर्स्थापित करे” !!

आकाश के निर्द्वन्द एकाधिपति के रूप में जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं, अंत में बचता है तीसरा लम्बा और अत्यन्त पीड़ादायी रास्ता। लेकिन बाज चुनता है तीसरा रास्ता और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है।

वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है, एकान्त में अपना घोंसला बनाता है और तब स्वयं को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ करता है।

सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार-मार कर तोड़ देता है, चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं है पक्षीराज के लिये ! और वह चोंच के पुनः उग आने की प्रतीक्षा करता है। उसके बाद वह अपने पंजे भी उसी प्रकार तोड़ देता है, और पंजों के पुनः उग आने की प्रतीक्षा करता है।

नयी चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक-एक कर नोंच कर निकालता है! और पंखों के पुनः उग आने की प्रतीक्षा करता है। 150 दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा के बाद उसे मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान पहले जैसी।

इस पुनर्स्थापना के बाद वह 30 साल और जीता है। ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ। इसी प्रकार इच्छा, सक्रियता और कल्पना, तीनों निर्बल पड़ने लगते हैं हम इंसानों में भी !

हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी। 150 दिन न सही, 60 दिन ही बिताया जाये स्वयं को पुनर्स्थापित करने में! जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही। और फिर जब बाज की तरह उड़ानें भरने को तैयार होंगे।

इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी, अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी। हर दिन कुछ चिंतन किया जाए और आप ही वो व्यक्ति हैं जो खुद को दुसरो से बेहतर जानते हैं।

यदि आपके पास स्वलिखित कोई अच्छे लेख, कविता, News, Inspirational Story, या अन्य जानकारी लोगों से शेयर करना चाहते है तो आप हमें “sochapki@gmail.com” पर ईमेल कर सकते हैं। अगर आपका लेख हमें अच्छा लगा तो हम उसे आपकी दी हुई details के साथ Publish करेंगे। धन्यवाद!

— Inder