प्राचीन समय की बात है एक बार जंगल में एक बूढ़े बरगद के पेड़ के नीचे पक्षियों की सभा हो रही थी। सभा में पक्षियों के राजा का चुनाव होना था तथा सबको मिलकर तय करना था कि उनका राजा किसे बनाया जाये। इस चुनाव को लेकर कुछ पक्षी आपस में झगड़ा करने लगे। उन सब में से एक बुज़ुर्ग पक्षी, जिसे सभी लोग संत कहते थे। वह उन सबको आपस में लड़ते हुए नहीं देख सका और खड़ा होकर बोला, “राजा वही बन सकता है जिसमें ताकत हो, सूझ-बूझ हो और जो अपने समाज को एकजुट रख सके।
यह सुनकर सभी पक्षी एक दुसरे को देखने लगे। उसी समय एक पक्षी ने खड़े होकर कहा, “मैं सबसे शक्तिशाली हूँ, इसलिये मै राजा बनूँगा।” उसकी बगल में पंख फैलाए दुसरे पक्षी ने कहा, “तुमसे ज्यादा शक्तिशाली और बुदिमान मै हूँ। इसलिये राजा बनने का मौका मुझे मिलना चाहिये।” जब सबकी सहमति से तय नहीं हुआ कि राजा कौन बनेगा तो संत ने कहा, “तुम दोनों लड़ो और जो जीत जाएगा वही राजा बनेगा।” अब दोनों पक्षी आपस में लड़ने लगे। पहले वाले पक्षी ने छल-कपट से जीत हासिल कर ली। संत ने उसे विजयी घोषित कर दिया। अब सभी विजयी पक्षी के इर्द-गिर्द जमा होकर उसका गुणगान करने लगे।
विजयी पक्षी चाहता था कि उसके राजा बनने की बात आस-पास के सभी पक्षी जान लें। इसलिये वह इठलाता हुआ एक पेड़ की डाल पर बैठ गया और अकड़ कर ऊँची आवाज में बोला, “सब लोग मुझे देखो, मैं सबमें विजयी पक्षी हूँ। इसलिए अब मैं राजा बन गया हूँ।” तभी ऊपर से एक चील ने उस पर झपट्टा मारा और उसे अपने पंजे में दबा कर उड़ गया।
पक्षियों की सभा में हडकंप मच गया और सब आंसू बहाने लगे। पक्षियों का संत बोला – तुम लोग आंसू क्यों बहा रहे हो? तुम्हे तो खुश होना चाहिए। एक पक्षी ने पूछा, “आखिर क्यों?” संत ने कहा, तुम लोगों ने देखा होगा कि
राजा बनने पर उसमें कितना अहंकार आ गया था। वह अंहकार वश अपना गुणगान खुद कर रहा था। एक अहंकारी राजा से हमे इतनी जल्दी मुक्ति मिल गई। यह तो हमारे समाज का सौभाग्य है। अहंकारी राजा कभी भी अपने समाज को सुरक्षा नहीं दे सकता है।
दोस्तों जीवन में कितने भी महान, बुद्धिमान, बलशाली क्यों न हो जाएं लेकिन हमें उसका अहंकार कभी भी नहीं करना चाहिये। क्योंकि अहंकार किसी भी प्राणी को विनाश की ओर ले जाता है। अहंकार विनाश की जड़ है और इसका अन्त निश्चित है, जिस प्रकार उस बलशाली पक्षी का हुआ।
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